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लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर




लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर 1904 को मुगलसराय मे रहने वाले एक गरीब शिक्षक शारदा श्रीवास्तव प्रसाद के घर मे हुआ था। उनके बचपन से जुड़ा एक रोचक किस्सा है कि उनकी माँ रामदुलारी एक बार तीन महीने के लाल को भूल से गंगा घाट मे गुम कर आई, मगर पुलिस की कड़ी मशक्कत के बाद लाल बहादुर एक बार फिर अपने घर मे थे।
डेढ़ साल की अल्पायु मे उनके सिर से पिता का साया उठ गया, बाद मे उनकी माता उन्हे ननिहाल ले गई। वाराणसी मे उच्च शिक्षा के दौरान एक बार शास्त्री अपने मित्रों के साथ गंगा पार मेला देखने गए, मगर वापसी मे उनके पास नाव के पैसे नहीं थे तो अपने साथियों से मदद लेने की बजाय खुद्दार लाल ने तैर कर गंगा पार की। बाल्यकाल मे ही स्वतन्त्रता आंदोलन मे सक्रिय भूमिका निभाने वाले लाल बहादुर ने जातिवाद से बचने के लिए अपने नाम के आगे से श्रीवास्तव हटा लिया और काशी विद्यापीठ से कोर्स करने के बाद उन्होने शास्त्री लिखना शुरू कर दिया। 1927 मे मिर्जापुर की ललिता देवी से शादी करते समय लाल बहादुर ने सिर्फ चरखा और कुछ खादी का सूत ही दहेज के रूप मे स्वीकार किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए शास्त्री ने कुल 9 साल जेल मे बिताए, हालांकि इस दौरान उनकी बेटी की बीमारी के चलते मौत हो गई, मगर उनके होंसले कम नहीं हुए। जुबान के धनी शास्त्री को आजादी के बाद उत्तरप्रदेश का संसदीय सचिव बनाया गया और बाद मे उन्हे परिवहन व पुलिस मंत्री का कार्यभार भी सौपा गया। कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद उन्होने शानदार संगठनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। जिसके चलते कांग्रेस को 1952, 1957 और 1962 के आम चुनावों मे शानदार जीत मिली। 1951 मे राज्यसभा का सदस्य बनने के बाद शास्त्री को रेल व परिवहन मंत्री बनाया गया, मगर महबूबनगर और अरिवालूर मे हुए रेल हादसों के बाद उन्होने नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। मगर 1957 मे उन्हे दोबारा से परिवहन, दूरसंचार, वाणिज्य, उद्योग व गृह मंत्रालय का कार्यभार सौपा गया। नेहरू के निधन के बाद उन्हे 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई गई। देश पर आए आर्थिक संकट और खाद्यान संकट से निपटने के लिए उन्होने जहां एक और सप्ताह मे एक दिन का उपवास शुरू किया, वहीं हरित क्रांति और श्वेत क्रांति को सच का चोला पहना दिया। 1965 मे पाकिस्तान के साथ चले 22 दिन के युद्ध मे उन्होने “जय जवान, जय किसान” का नारा बुलंद कर सेना व किसानों की हौसला अफजाई की। इस दौरान लोकसभा मे दिए अपने वक्तव्य मे उन्होने दोहराया कि हिंदुस्तान जब तक जरूरी होगा गरीबी सह लेगा मगर अपनी आजादी से समझोता नहीं करेगा। ताशकंद मे युद्धविराम की घोषणा के बाद 10 जनवरी 1966 को शास्त्री व आयुब खान ने समझोटे पर दस्तखत किए और अगले ही दिन तथाकथित ह्रदयघात से उनकी मौत की मनहूस खबर सारी दुनिया को मिली। इसी के साथ भारत रत्न और करोड़ों लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ने वाले लाल बहादुर शास्त्री इस दुनिया से रुखसत ले गए। जिसकी कमी आज तक खल रही है, भारत माँ के इस लाल को शत-शत नमन.
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