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किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं





किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं.
कहीं मंदिर की परछाई कहीं मस्जिद का साया हैं..
न तब पुछा था हमसे न अब पूछने आयें
हमेशा फेसले करके हमे यूँही सुनाया हैं,
किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं.

हमें फुर्सत कहाँ रोटी की गोलाई से,
न जाने किसका मंदिर हैं न जाने किसकी मस्जिद हैं
न जाने कौन उलझाता हैं सीधे सच्चे धागों
कौन जाने किसकी ये जिद हैं
अजब सा सिलसिला हैं न जाने किसने चलया हैं
किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं.


वो कहतें हैं तुम्हारा हैं ज़रा एक नज़र डालो
वो कहेते हैं बढ़ो माँगो जरुरी हैं न तुम टालो,
मगर अपनी जरुरत तो हैं बिलकुल अलग इनसे
जरा ठहरो जरा सोचो हमें इन सांचों में मत ढालो
कौन ये शोला मेरे आँगन में लाया हैं
किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं.


अगर हिन्दू में आंधी हैं तूफां मुसलमा हैं
तो आओ आंधी तूफां यार बनकर कुछ नया
करें तो आओ नज़र डाले अहम से कुछ सवालों पर
नज़र डालें कई कोने अँधेरे हैं मशालों को दिया करे
अब असली दर्द बोलेंगे जो सिने में छुपाया हैं
किसी ने कुछ बनया था किसी ने कुछ बनया हैं.
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